Friday 25 March 2022

मद्रास उच्च न्यायालय ने सरकारी कर्मचारी को तीसरे बच्चे के लिए एक साल का मातृत्व अवकाश देने को कहा

मद्रास उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि पहली शादी से पैदा दो बच्चों को ‘जीवित’’ अवयस्क नहीं करार दिया जा सकता क्योंकि वे अलग हो चुके पहले पति के साथ रहते हैं। इसके साथ ही अदालत ने तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिया कि वह महिला कर्मचारी को दूसरी शादी से होने वाले तीसरे बच्चे के लिए एक साल का मातृत्व अवकाश प्रदान करें।
न्यायमूर्ति वी पार्थीबन ने यह फैसला के उमा देवी की रिट याचिका पर सुनाया। उमा देवी ने 28 अगस्त 2021 को धर्मपुरी जिले के मुख्य शिक्षा अधिकारी का आदेश रद्द करने और संबंधित अधिकारियों को 11 अक्टूबर 2021 से 10 अक्टूबर 2022 तक पूर्ण वेतन और सभी लाभ के साथ मातृत्व अवकाश देने का निर्देश देने का अनुरोध किया था।
उमा देवी ने वर्ष 2006 में ए सुरेश से पहली शादी की थी और उनके दो बच्चे हुए लेकिन वर्ष 2017 में उनका सुरेश से तलाक हो गया। उन्होंने अगले साल एम राजकुमार से दूसरी शादी की और बाद में मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया लेकिन 28 अगस्त 2021 को धर्मपुरी जिले के मुख्य शिक्षा अधिकारी ने उनके आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया कि मातृत्व अवकाश का लाभ केवल दो जीवित संतानों के लिए दिया जा सकता है और दोबारा शादी करने पर तीसरे संतान के लिए मातृत्व अवकाश का कोई प्रावधान नहीं है।
उमा देवी की याचिका स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति पर्थीबन ने 20 जुलाई 2018 के सरकारी आदेश को रेखांकित किया जिसमें पहली बार जुड़वा बच्चे होने पर भी दूसरी बार प्रसूति लाभ का विस्तार किया गया है।

Sunday 20 March 2022

न्यायालय ने अमेजन की याचिका पर फ्यूचर से जवाब-तलब किया

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को अमेरिका की ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन की अंतरिम याचिका पर फ्यूचर समूह से जवाब-तलब किया। याचिका में फ्यूचर रिटेल (एफआरएल) के रिलायंस रिटेल के साथ विलय सौदे को लेकर मध्यस्थता कार्यवाही शुरू करने की अनुमति देने और एफआरएल की संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है।

मुख्य न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायाधीश ए एस बोपन्ना और न्यायाधीश हिमा कोहली की पीठ के समक्ष अमेजन ने यह भी आग्रह किया कि न्यायालय ऐसा आदेश दे, जिससे एफआरल की संपत्तियां बनी रहें ताकि अगर वह मध्यस्थता कार्यवाही में जीतता है, तो ये संपत्तियां उसके लिये उपलब्ध रहे। पीठ ने अमेरिकी कंपनी की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ताओं गोपाल सुब्रमण्यम और रंजीत कुमार से कहा, ‘‘हम इस पर 23 मार्च को सुनवाई करेंगे और कुछ आदेश देंगे। इस बीच, आप (फ्यूचर रिटेल लि. और फ्यूचर कूपन्स प्राइवेट लि.) इस बारे में अपना जवाब दें।’’

शुरू में पीठ ने कहा कि अगर अमेजन तत्काल कुछ अंतरिम आदेश चाहती है, तब वह दिल्ली उच्च न्यायालय जा सकती है या मध्यस्थता न्यायाधिकरण से मध्यस्थता कार्यवाही शुरू करने को लेकर राहत का आग्रह कर सकती है। इस पर कंपनी की तरफ से पेश सुब्रमण्यम ने कहा, ‘‘मैं इस न्यायालय के आदेश का इंतजार करूंगा।’’ फ्यूचर रिटेल लि. (एफआरएल) और फ्यूचर कूपन्स प्राइवेट लि. (एफसीपीएल) की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्तिा हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी ने कहा कि वे मध्यस्थता कार्यवाही के लिये सहमत थे।

साल्वे ने कहा, ‘‘मैं कल इस बात के लिये सहमत था। हमें आगे कार्यवाही की जरूरत नहीं है।’’ अमेजन ने मंगलवार को कहा था कि बातचीत के जरिये निपटान के लिए 10 दिन में सहमति बनाने की कोशिश कामयाब नहीं हो पाई है। गत तीन मार्च को पीठ ने अमेजन को बातचीत के लिए 10 दिन का वक्त दिया था। पीठ दिल्ली उच्च न्यायालय के पांच जनवरी के आदेश के खिलाफ अमेजन की अपील पर सुनवाई कर रही है। उच्च न्यायालय ने रिलायंस रिटेल के साथ फ्यूचर रिटेल के विलय सौदे पर मध्यस्थता न्यायाधिकरण के समक्ष मध्यस्थता की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी।

मानहानि केस: मद्रास उच्च न्यायालय ने ट्विटर को आरोप मुक्त करने से किया इनकार

मद्रास उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को मानहानि केस में ट्विटर को आरोप मुक्त करने से इनकार कर दिया है। फिल्म निर्देशक सुसी गणेशन द्वारा कवयित्री और फिल्म निर्माता लीना मनिमेकलाई, विभिन्न फिल्म हस्तियों और अन्य सोशल मीडिया संगठनों के खिलाफ मानहानि केस दायर किया था। मामले में शुक्रवार को हुई सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति पी वेलमुरूगन ने माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर की अर्जी को खारिज कर दिया है।

दरअसल सुसी गणेशन ने सैदापेट की नौवीं मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अदालत में मानहानि याचिका दायर की थी। दायर याचिका में उनके खिलाफ साल 2019 में मीटू के आरोपों के लिए मनी मनिमेकलाई और सिंगर चिन्मयी को सजा देने की मांग की गई थी। अपनी याचिका में गणेशन ने यह भी दावा किया था कि सभी आरोप निराधार है। उन पर यह आरोप फिल्म जगत में उनके नाम और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए लगाए गए हैं।

पूरे मामले में गणेशन ने ऑनलाइन न्यूज़ मीडिया कंपनी न्यूज मिनट, फेसबुक, गूगल, ट्विटर और इस तरह के अन्य संस्थानों पर कथित तौर पर अपमानजनक बयान प्रकाशित करने का आरोप लगाया था। इस मामले में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का भी रुख किया था, जिस ने बीते साल दिसंबर में मामले में सैदापेट की निचली अदालत को 4 महीने में सुनवाई पूरी करने का आदेश दिया था।

इसी बीच उन्होंने हाई कोर्ट में भी अर्जी दायर करते हुए प्रतिवादियों को उनके खिलाफ कोई अन्य आरोप लगाने से रोकने की भी मांग की थी। साथ ही उन्होंने सभी प्रतिवादियों से संयुक्त रूप से एक करोड़ 10 लाख रुपये का मुआवजा भी मांगा था इसी सिलसिले में आज शुक्रवार को उच्च न्यायालय में सुनवाई की गई।

इस दौरान ट्विटर के वकील ने न्यायमूर्ति वेलमुरूगन से कहा कि उनका मुवक्किल सिर्फ एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है, जिसका काम जानकारी प्रसारित करना है। इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन अदालत ने यह दलील खारिज कर दी। इस दौरान कोर्ट ने प्रतिवादियों को लिखित रूप में अपना पक्ष रखने का निर्देश देते हुए मामले की सुनवाई 13 अप्रैल तक टाल दी है।